Hindi poetry - An Overview
Hindi poetry - An Overview
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नहीं जानता कौन, मनुज आया बनकर पीनेवाला,
कोमल कूर-करों में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं,
देख रहा हूँ अपने आगे कब से माणिक-सी हाला,
झगा करेगा अविरत मरघट, जगा करेगी मधुशाला।।२२।
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला,
एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला।।६२।
अथक बनू मैं पीनेवाला, खुले Hindi poetry प्रणय की मधुशाला।।६३।
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना: कितना चौड़ा पाट नदी का, कितनी भारी शाम
मिले न, पर, ललचा ललचा क्यों आकुल करती है हाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला।।४४।
क्या पीना, निर्द्वन्द न जब तक ढाला प्यालों पर प्याला,
होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई, फिर
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